महजबीं

कॉफ़ी टेबल पर,
दो दरिया बांधे,
अनबुझे काजल को देखा,
सुर्ख़ कपड़ों में लिपटे,
सफ़ेद कमल को देखा,
मेरे लफ़्ज़ों से कहीं ज्यादा खूबसूरत है,
मेरी डायरी के पन्नों से निकली,
उस ग़ज़ल को मुझसे बतियाते,
कभी नज़र चुराते और मुस्कुराते देखा…

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2 thoughts on “महजबीं”

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