गाँव की सड़क

शहर की सड़कें रातों को भी अकेली नहीं होतीं
कोई न भी हो तो स्ट्रीट लाइट्स होतीं हैं साथ
गाँव में स्ट्रीट लाइट्स तो नहीं लेकिन पेड़ होते हैं
वो भी सैंकड़ों टिमटिमाते जुगनुओं से घिरे होते हैं
आसमान भी इतनी दूर रहता है कि
तारे भी जुगनुओं से ही लगते हैं
इसलिए सड़क सुनसान और अकेली ही रह जाती है
दिन में इस सड़क से इंसान-जानवर सब गुज़रते हैं
और गुज़रते हुए वो सबकुछ करते हैं बिना ये सोचे
कि उन्हें कल या कभी न कभी दुबारा यहाँ से जाना है
बकौल तमाम राही यहाँ से होकर
अपनी-अपनी मंज़िलों तक पहुँच भी जाते हैं
रह जाती है तो बस वो ग़ुमनाम सड़क
जो गंदी होने पर दुत्कारी जाती है
धूप में तपने पर लतयाई जाती है
उखड़ने पर बेहद ज़लील भी होती है
लेकिन तब भी वो सर्दी, गर्मी, बारिश बर्दाश्त करके
जहाँ की तहाँ जमीं रहती हैं
ताकि लोग हाईवे तक पहुँच सकें
लौटकर अपनों से भी मिल सकें
मैं वो सड़क हूँ
और मुझे सड़क होने का कोई मलाल नहीं

ये पोस्ट औरों को भेजिए -

Leave a Comment