मेरे बारे में

चक्रेशहार सिंह सूर्या…! इतना लम्बा नाम!! अक्सर ये प्रतिक्रया लोगों से सुनने मिलती है. हालाँकि मुझे अपने नाम से बेहद प्यार है. उसकी एक वजह है कि इन्टरनेट में ढूँढने पर ऐसे नाम का और कोई कॉम्बिनेशन नहीं मिलता. एक तरह से देखा जाए तो मेरे पिता द्वारा दिया गया यह नाम अपने आप में अनूठा है. हालाँकि जब मैं 4-5 साल का था तब मुझे हमारे फॅमिली डॉक्टर “चित्रहार” कहकर पुकारते थे. क्यूँ? ये मुझे आज तक समझ नहीं आया.

ख़ैर, मैंने जबलपुर के ही सेमी-गवर्नमेंट स्कूल में ही अपनी पढ़ाई की उसके बाद जबलपुर के ही महाकोशल कॉलेज में आर्ट्स लेकर स्नातक की पढ़ाई की. बीच में पत्रकारिता और क़ानून की भी थोड़ी पढ़ाई की लेकिन उन्हें पूरा करने में मन लगा नहीं. स्कूल ख़त्म करते ही मीडिया में जाने का इरादा बन गया इसलिए 2004 के आस-पास एक स्थानीय मीडिया कॉलेज के लैब जर्नल में काम करने की अनुमति माँगने की कोशिश की. तो उन्होंने पहले उसे बाँटने का काम थमा दिया. हालाँकि बाद में उसी कॉलेज के लिए PR, मीडिया कोर्स काउंसलिंग और रेडियो जॉकी कोर्स के लिए ट्रेनिंग देने का भी काम मिला. उसके बाद कॉलेज की पढ़ाई के दौरान ही कॉमनवेल्थ ह्यूमन राइट्स इनिशिएटिव के लिए सूचनाधिकार कार्यकर्ता तौर पर काम करने के साथ-साथ दो राष्ट्रीय समाचार पत्रों में पत्रकार के तौर पर कुछ समय तक काम किया.

सही ढंग से काम करने की शुरुआत 2008 में एक निजी एफ़ एम चैनल में रेडियो जॉकी की जॉब से हुई. सही ढंग से मतलब जब आपको काम करने के आपको ठीक-ठाक पैसे-वैसे मिलने लगते हैं. मतलब अब तक जितना काम किया उसमें या तो पेट्रोल का ख़र्च ही मिला या फिर समझ लीजिये कि मुफ़्त में ही किया. हाँ लेकिन अनुभव बहुत मिला. एक मित्र की प्रेरणा से ब्लॉग लिखने की शुरुआत भी रेडियो में आने से पहले हो हो चुकी थी लेकिन उसमें पोस्ट कभी-कभार ही करता था. लगभग ढाई साल रेडियो में काम करने के बाद जॉब छोड़कर मुम्बई जाने का विचार मन में आया. क्यूँ? रेडियो जॉकी जैसी जॉब कौन छोड़ता है? ऐसे फ़ैसलों में दो चीज़ों का हाथ होता है, पहला दोस्त और दूसरा असंतुष्टि. दोस्त अक्सर मेरे अन्दर हवा भरते थे कि यहाँ क्या कर रहा है मुम्बई जा और असंतुष्टि इस बात से थी कि रेडियो में मेहनत तो बहुत कर रहा था लेकिन उस मेहनत की कद्र कोई नहीं कर रहा था.

इसके बाद बालाजी टेलेफ़िल्म्स में एक टीवी सीरियल में असिस्टेंट डायरेक्टर के तौर पर काम किया. किसी कारणवश एक इवेंट के काम को सम्पन्न करने के लिये जॉब छोड़कर वापिस जबलपुर आना पड़ा. जिसके बाद मुम्बई वापिस जाने का विचार छूट गया. फिर इंदौर जाकर एक निजी एफ़ एम चैनल में कॉपीराइटर की जॉब की और यहाँ पर लगभग दो साल रहते हुए अपनी नज़्मों पर काम करना शुरू किया, अपनी पहली शॉर्ट फ़िल्म भी बनायी. अपनी नज़्मों के लिए प्रसिद्ध गायिका रेखा भारद्वाज से प्रशंसा प्राप्त करने के बाद इंदौर से जॉब छोड़कर फिर से मुम्बई की ओर रुख किया. मुम्बई आकर रेखा जी से प्रोत्साहन पाकर लेखन का कार्य गम्भीरता से शुरू किया. जिसके बाद एक फ़ीचर फ़िल्म के लिए डायलॉग लिखने का काम मिला, जिसमें 5th असिस्टेंट डायरेक्टर के तौर भी काम किया. फिर फ्रीलान्स काम करना शुरू किया जिसमें डिजिटल प्लेटफॉर्म के लिए विज्ञापन, ऑडियो एड, प्रिंट एड, डॉक्यूमेंट्री, स्टोरी, स्क्रिप्ट्स लिखे. एक अन्य फ़ीचर फ़िल्म में 1st असिस्टेंट डायरेक्टर का काम भी किया. बीच-बीच में जबलपुर जाकर अपने NGO ट्राय फाउंडेशन के लिए भी काम किया. वर्तमान में मुम्बई में ही फीचर फ़िल्म के लिए स्टोरी और स्क्रिप्ट लिखने के साथ-साथ डायरेक्शन के काम में मुकाम हासिल करने में प्रयासरत हूँ.

चक्रेश