लाइफ

नया-नया प्यार होता है, तो जिंदगी की बिंदी, नुक्ता और बड़ी इ हटकर,
लाइफ बन जाती है वो,
और इस लाइफ में फूलों के वो रंग भी दिखने लगते हैं,
जो किसी बगिया में होते ही नहीं हैं,
बिस्तर के आस-पास अखबारों, कागजों, कपड़ों, कटोरी-चम्मचों का ढेर लग जाता है,
चादरों, कम्बलों पर सिलवटें पड़ जाती हैं और तकिये बालों के छोटे टुकड़ों से पट जाते हैं,
पूरी रात एक-दूसरे को सुलाते-सुलाते बीत जाती है और सुबह सोने का मन करता है,
एक साथ घूमना, खाना-पीना, चौपाटी में कॉफ़ी की चुस्कियां लेना कितना अच्छा लगता है,
ज़मीने हकीक़त से दूर, आसमां में चाँद के पास तारों को नया नाम देना…
बहुत कुछ होता है,
वैसे प्रैक्टिकल लोग भी ऐसा ही करते हैं,
मिलते वक़्त कभी अलग होने के बारे में नहीं सोचते,
पर प्रैक्टिकली यही होता है,
कि पानी नहीं सीचने से गुलाब का पौधा भी मर जाता है,
और कोई उबली हुई चायपत्ती उसे हरा-भरा नहीं कर सकती,
चाहें वो कितनी भी ब्रांडेड क्यों न हो…

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2 thoughts on “लाइफ”

  1. पानी नहीं सीचने से गुलाब का पौधा भी मर जाता है,
    और कोई उबली हुई चायपत्ती उसे हरा-भरा नहीं कर सकती,
    चाहें वो कितनी भी ब्रांडेड क्यों न हो…

    Truely Touching…

    Regards

    Ram K Gautam

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