चाँद के इतना करीब,
पहले तो नहीं देखा था उसे,
जाने क्यों; आज इतना लढ़या रहा है,
जो नाम था रखा, उसका मतलब तो पता नहीं,
पर इतना याद है, कि तुम्हारे और मेरे नाम से,
बीनकर कुछ शब्द,
रख दिए थे किनारे और बना दिया था कुछ…
एक मार्च की बीती हुई शाम को चाँद के करीब देखा था तुम्हें…