आसमान के आँगन में,
बादल बैठक तो जमाते हैं,
उनके कहकहों में,
कुछ बूँदें छिटककर,
नीचे भी आती हैं,
और ज़मीदोज़ हो जाती हैं,
महीनों से प्यासी धरती को,
इंतज़ार है,
कि कब,
बादल ठहाके मारकर हँसें,
और बूंदों की झड़ी लग जाए,
बारिश की ख्वाहिश में,
आधा सावन सूखा बीत गया,
और आधा,
बीतने को बाकी है…
बादल बैठक तो जमाते हैं,
उनके कहकहों में,
कुछ बूँदें छिटककर,
नीचे भी आती हैं,
और ज़मीदोज़ हो जाती हैं,
महीनों से प्यासी धरती को,
इंतज़ार है,
कि कब,
बादल ठहाके मारकर हँसें,
और बूंदों की झड़ी लग जाए,
बारिश की ख्वाहिश में,
आधा सावन सूखा बीत गया,
और आधा,
बीतने को बाकी है…
bahut hi badiya prastuti…
hamen bhi barsate saawan ka intzaar hai…
hamen bhi ab ki baar saawan rutha rutha nazar aata hai….
..sach kahan aapne baadal thahake maarkar hanste dikhte hain aur ham hairan-pareshan…
bahut sundar prastuti..