तवायफ़

उसके यहाँ वो सब जाते हैं
जिन्हें जाने का मौका मिलता है,
जो दिन के उजाले में जाने से कतराते हैं
वो रात में गुम होकर जाते हैं,
जो खुले चेहरों में जाने से डरते हैं
वो चेहरा ढंककर जाते हैं,
जिन्हें अपनी सरहद पर दूसरे की परछाईं बर्दाश्त नहीं
वो वहां अगल-बगल बैठते हैं,
जिन्हें एक थाली में खाने से परहेज़ है
वो वहां एक पानदान से पान नौश फरमाते हैं,
जो एक बर्तन का पानी नहीं पीते
वो वहां एक ही सुराही से जाम पलटते हैं,
जो उसके दर से बाहर निकलते ही बंटकर
हिन्दू-मुसलमान, अमीर-गरीब हो जाते हैं,
उसके यहाँ सब एक हो जाते हैं,
धरम-अधरम, ऊँच-नीच, बड़ा-छोटा
उसके यहाँ ये कुछ नहीं होता,
उसके कोठे पे,
सब उसके मुरीद होते हैं….

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