पूरे दिन बीते मंज़र की कतरन,
जेब से निकालकर रख देता हूँ,
घर की मेज़ पर,
दूसरे दिन फिर बटोरकर,
उन्हें जोड़कर,
आगे की कड़ी ढूंढ़ता हूँ,
कई बार,
मेरे सोते से,
बहुत सारी कतरन,
रात की हवा उड़ा ले गयी,
तभी से देर रात तक,
जागने की आदत पड़ गयी है…
नज़्मों का घर
पूरे दिन बीते मंज़र की कतरन,
जेब से निकालकर रख देता हूँ,
घर की मेज़ पर,
दूसरे दिन फिर बटोरकर,
उन्हें जोड़कर,
आगे की कड़ी ढूंढ़ता हूँ,
कई बार,
मेरे सोते से,
बहुत सारी कतरन,
रात की हवा उड़ा ले गयी,
तभी से देर रात तक,
जागने की आदत पड़ गयी है…