ज़िंदादिली

नाज़ है मुझे अपनी ज़िंदादिली पर,

कि किसी बात को कहने के लिये,

मुझे उसपे,
कोई चोगा नहीं डालना पड़ता,
चाहे तपती धूप हो,
जमाने वाली सर्दी हो,
या बहा ले जाने वाली बारिश,
मेरे अलफ़ाज़,
यूँ ही,
खुले बदन निकल पड़ते हैं,
कहीं भी जाने को,
नाज़ है मुझे अपनी ज़िंदादिली पर…

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