ख्वाहिश

आज सोचा उसे बेवफ़ा का तख़ल्लुस दिया जाये,
चलके किसी तवायफ़ से दिल लगाया जाये,
पर्दा-ए-हुस्न का हुनर तो देख लिया,
अब ज़रा बेपर्दा-ए-हुस्न का तमाशा भी देखा जाये,
यूँ तो सब हकीक़त छुपा के रखते हैं,
पर जिसके पास छुपाने को न हो कुछ,
ज़रा उसकी महफ़िल में भी ठहरा जाये,
चलके किसी तवायफ़ से दिल लगाया जाये…

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1 thought on “ख्वाहिश”

  1. आज सोचा उसे बेवफ़ा का तख़ल्लुस दिया जाये,
    चलके किसी तवायफ़ से दिल लगाया जाये,
    पर्दा-ए-हुस्न का हुनर तो देख लिया,

    इन पंक्तियों ने दिल छू लिया… बहुत सुंदर ….रचना….

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