वो कॉफ़ी हाउस की टेबल याद है तुम्हें?
बारह नंबर वाली,
जहाँ अक्सर हम बैठा करते थे,
कॉफ़ी पीते थे कभी, नाश्ता भी करते थे,
लड़ते भी थे कई बार वहां,
और कई बार सुलह भी करते थे,
अभी कुछ दिनों पहले मैं वहां गया था,
वो टेबल मुझे देख कर बोली,
अमां! आज अकेले ही आये हो?
वो नहीं आयी???
sahi kaha anil ji ne
इस तरह की रचनाएँ भी अपना एक अलग महत्त्व रखती हैं
table no.12…hhhhmmmm
बेहद उम्दा अभिव्यक्ति
इस तरह की रचनाएँ भी अपना एक अलग महत्त्व रखती हैं .