अकेलापन

दिन भर के बाद जब शाम को घर जाता हूँ,
तो सबसे पहले घर के ताले से रु-बा-रु होता हूँ,
और जब दाखिल होता हूँ अन्दर,
तब घर से सामना होता है मेरा,
सुबह से मेरे जाने के बाद,
कोई होता नहीं है उससे बतियाने को,
इसलिए शाम को मुझे देखते ही,
उसका मुँह सूज जाता है,
सारी नाराज़गी मुझ पर ज़ाहिर करता है,
एक बात बताऊँ,
उस घर के दांत नहीं हैं,
फिर भी वो मुझे काटने को दौड़ता है.

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4 thoughts on “अकेलापन”

  1. एक बात बताऊँ,
    उस घर के दांत नहीं हैं,
    फिर भी वो मुझे काटने को दौड़ता है.
    Kitna sach hai in shabdon me!

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  2. उस घर के दांत नहीं हैं,
    फिर भी वो मुझे काटने को दौड़ता है.
    बस अकेलापन ऐसा ही होता है। बहुत अच्छी रचना है धन्यवाद्

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  3. सही लिखा आपने..!आज के समय में सबसे बड़ा दुश्मन बन गया है ये अकेलापन!!!पर क्या करें हर किसी को इसी के साथ रहना पड़ रहा है..शायद यही आज की मांग है..

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