ज़िक्र

ज़िक्र तेरा जब किसी दर पे सर-ए-सुबह उठा है,
निकलते-निकलते वहाँ से शाम हुई है..

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2 thoughts on “ज़िक्र”

Sunil Kumar को प्रतिक्रिया दें जवाब रद्द करें