मायने

कभी देखा है,

पन्नो पर बिलबिलाते,
उन लफ़्ज़ों को,
जो किसी मतलब का होने के लिए,
बड़े उम्मीद भरे लहजे में,
ताकते रहते हैं इक-दूसरे को,
वैसे भी,
बेमायने रहना किसी को पसंद नहीं,
आओ,
हम-तुम भी गढ़ लें अपने-अपने मायने,
कब तलक यूँ ही ताकते रहेंगे इक-दूसरे को?

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