बेटियाँ

अँधेरे कमरे में भी
धूप को पनपने के लिए
बस इक सुराख़ की ज़रूरत है
जहाँ से छनकर
वो अपना अक्स
ख़ुद ही तराश लेती है
फिर जितनी देर
वो उस अँधेरे कमरे में रहती है
उतनी देर वो हिस्सा
बक़ायदा रोशन रहता है
बेटियाँ जहाँ भी जाती हैं
उनके साथ वहाँ उजाला भी जाता है.

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