तुम्हारी आदत

सुना, कि आज तुम इस गली से गुज़रे थे,
तब, मैं उस वक्त छत पे चाँदनी में बैठा था,
थोड़ा रुक जाते, मेरे लिये,
पर तुमने तो रुकना सीखा ही नहीं,
तुम्हारी इसी आदत पर,
इक बार पहले भी बात हो चुकी है,
देखो! इस आदत के चलते,
कहीं ऐसा न हो,
कि तुम बहुत आगे निकल जाओ,
और मैं फिर से यहाँ रह जाऊं…एकदम तन्हां!

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