नाम-बदनाम
एक मैं ही नासमझ निकला दयार-ए-यार में,कम से कम बाज़ार में इसकी तो दाद मिले।
नज़्मों का घर
एक मैं ही नासमझ निकला दयार-ए-यार में,कम से कम बाज़ार में इसकी तो दाद मिले।
सब उम्मीद से हैंजैसे तुमवैसे मैं भीऔर ये उम्मीदप्रसव पीड़ा तकयानिमृत्यु पर्यन्त रहेगी।
कृषि प्रधान देश को डिजिटल बना दीजिये साहबफिर हम सब खेतों में डेटा उगायेंगेजो किसान … Read more