नाम-बदनाम

एक मैं ही नासमझ निकला दयार-ए-यार में,कम से कम बाज़ार में इसकी तो दाद मिले।

“बूमरैंग”

(तीसरी किश्त) उसने उस लड़की को मल्टीप्लेक्स के बाहर ड्राप कर दिया। न तो उस … Read more

बूमरैंग

(दूसरी किश्त) सितम्बर की दोपहर थी, हल्की सी धूप कॉफ़ी हाउस के काँच वाले दरवाज़े … Read more

बूमरैंग

(पहली किश्त) पहली बार जब वो उस लड़की से मिला था तो उसके दिमाग में … Read more

गर्भ

सब उम्मीद से हैंजैसे तुमवैसे मैं भीऔर ये उम्मीदप्रसव पीड़ा तकयानिमृत्यु पर्यन्त रहेगी।

धोख़ेबाज़ी

बातें बनावटी हों तो भी पकड़ आ जाती हैंफिर चेहरों से इंसान धोख़ा क्यूँ खा … Read more

काजल

उसकी बड़ी-बड़ी आँखों पर काजल की हदों नेन जाने कितने दिलों को बाँट दिया होगाकोई … Read more

डिजिटल इण्डिया

कृषि प्रधान देश को डिजिटल बना दीजिये साहबफिर हम सब खेतों में डेटा उगायेंगेजो किसान … Read more