जजमेंटल दुनिया

क्या यह संभव है कि सांस लेने और छोड़ने के बीच

किसी के जीवन में कुछ ना घटा हो

जाहिर सी बात है कि अगर आप जिंदा हैं

तो जिंदा रहने की जद्दोजहद में

कुछ तो हाथ पांव मारे होंगे

जिससे कभी खुद को

तो कभी किसी और को चोट लगी होगी

तुम्हारी चोट देखकर पूछा जाएगा कि सामने वाले को कितनी लगी

क्या तुम्हें रत्ती भर भी दया नहीं आई

कि तुम्हारी वजह से किसी को दर्द हुआ होगा

उसके आंसू भी निकले होंगे

क्या वो उस चोट के दर्द से उबर पाया?

इससे पहले कि तुम कुछ कह पाओ

न सिर्फ तुम्हें बल्कि तुम्हारी चोटों को भी अनसुना कर दिया जाएगा

इसी को जज मेंटल होना कहते हैं

और पूरी दुनिया इस डिसऑर्डर से ग्रस्त है

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