Pause

मैं तुम पर आता हूँ तो रुक जाता हूँ
उतना ही जितना पहली दफ़ा रुका था
जब देखा था मैंने तुम्हें
अफ़साने के बाजू में
ग़ज़ल की तरह बैठे हुए
जिसकी हर इक मुस्कुराहट का लहजा
एक मुक़्क़मल मिसरे की तरह था
मैंने अपने ज़हन के हर पुराने लफ़्ज़ को फूँककर
धूल की तरह उड़ा दिया था
ताकि तुम्हें वहाँ बैठने में कोई तकलीफ़ न हो
पता नहीं बैठे-बैठे कब आँखें लगीं तुम्हारी
तुम्हारी बंद आँखों से मैंने भी सपने देखने शुरू कर दिए
कि इस ज़हन को तुम कैसे अपना आशियाँ बनाओगी
इसकी खिड़की में किस रंग के पर्दे होंगे
और दरवाज़ा होगा भी या नहीं
या सिर्फ़ खिड़की से ही आना-जाना करना होगा
मैं सब में और सबसे ज़्यादा तुममें ख़ुश था
पर तुम मुझमें ख़ुश थीं या मुझसे ख़ुश थीं
ये तब भी तय न हो सका जब तुमने आँखें खोलीं
क्योंकि तब तक तुम कुछ और ही तय कर चुकी थीं
एक नतीजे पर पहुँचने का सफ़र
किसी की ख़ुद्दारी से बेक़द्री तक पहुँचने का सफ़र
जो तुम्हें इतनी दूर ले गया मुझसे
कि अब ख़याल भी अकेले सफ़र करने से क़तराते हैं…
लेकिन कभी-कभार जब ये कोशिश करते हैं तुम तक जाने की
तब मैं तुम पर उतना ही रुकता हूँ
जितना पहली दफ़ा रुका था
जब देखा था मैंने तुम्हें
अफ़साने के बाजू में
ग़ज़ल की तरह बैठे हुए

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