हाँ मर्द भी रोता है

क्यों लगता है तुमको
नहीं भावुक पुरुष समाज यहाँ
क्यों कह देते हो अक्सर
कि तुमको फ़र्क़ नही पड़ता

कैसे ये लग सकता है
नहीं मर्द को होती है पीड़ा
कैसे ये लग सकता है
वो कभी मायूस नहीं होता

नहीं दिखाता है क्योंकि
वो अपने अंतर घाव को
या नहीं बताता है अपनी
आहत होती इच्छाओं को

या यूँ है लगता क्योंकि
वो हँसकर सबसे है मिलता
या यूँ है लगता क्योंकि
वो दिखता कभी नहीं रोता

ऐसा भी हो सकता है
कि तुमने बाँधा हो उसको
ये कहकर बार-बार उससे
कि मर्द होके भी रोते हो

और ये भी तो हो सकता है
सब कहते हों अपनी उससे
और वो कुछ न कहता क्योंकि
दुःखियों को क्यों वो द्रवित करे

या घर में सब रखते उससे
दृढ़ रहने की उम्मीद बहुत
या बाहर लोगों को लगता
है उनका लड़का लायक कुछ

माँ का राजा बेटा जो और
बहिन का बनके रक्षा कवच
पिता की चुप्पी भी सहता
कभी न कड़वा कहता कुछ

ला देता है जाके झट से
परचून से घर का सामान
या मेहमानों के आने पर
दे देता है अपना कमरा

बहिन की शादी में जो
आख़िर तक तैयार नहीं होता
या हो भी जाये तो
नए कपड़े में पूरियाँ ढोता

विदा बहिन जब होती है
तो घर में जो छुप जाता है
रोता कमरा बंद करके
आँखें लाल कर लेता है

रिटायरमेंट की पार्टी में
पिता का थामे हाथ जो
लेके घर की उनसे कमान
बन जाता है एक पहिया वो

इतना करने के बाद भी
रहता फिर भी इंसान है
करता अपने हिस्से का काम
इसमें क्या बात महान है

इस जग में तो जीते हैं
जीवन सब अपना-अपना
काम सभी को करना है
और गुज़ारा भी अपना

वो ऐसा कुछ भी करता हैं
जिसकी चर्चा होती नहीं
जिस करनी में होती है
बस उसके अपनों की ख़ुशी

न शाबासी वाहवाही
नहीं किसी से कुछ मिलता
लोग उसे हैं फ़र्ज़ समझते
और उसको कर्ता धर्ता

उसके अंदर भी इक दिल है
तुमने टटोला कभी नहीं
धक से है वो भी रह जाता
जब होती है अनहोनी

कुछ होता तो भी कहता
वो सबसे सब ठीक है
अंदर अंदर घुटता रहता
उठती मन में टीस है

बढ़ जाता जो दर्द हदों से
वो तन्हा हो लेता है
और एकाकीपन में जाके
हाँ मर्द भी रोता है

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