लगभग सबकुछ लौटा चुके हो तुम,
पर थोड़ा-थोड़ा कुछ बाकी है,
वो थोड़ा बहुत कुछ है मेरे लिये,
पर मैंने कभी कहा नहीं,
आज कह रहा हूँ इसलिए गुस्ताखी माफ़,
क्या लौटा सकते हो वो रात,
जब मैं अपने दोस्त की याद में सिमटा रहा तुम्हारे कंधों पर,
क्या दुबारा मिल सकते हैं वो आंसू,
जो साथ रहते ख़ुशी और गम में बहे हैं,
क्या मिल सकती हैं वो पानी की बूंदें,
जो तुमने मेरे बदन से पोछीं हैं,
क्या पा सकता हूँ वो रेशम के तार,
जो रात भर जागकर हमने साथ बुने हैं,
जानता हूँ मुमकिन नहीं,
इसलिए तो कह रहा हूँ,
शायद तुम समझ जाओ,
कि जो बीत गया उस पर अपने कोई जोर नहीं…
क्या मिल सकती हैं वो पानी की बूंदें,
जो तुमने मेरे बदन से पोछीं हैं,
क्या पा सकता हूँ वो रेशम के तार,
जो रात भर जागकर हमने साथ बुने हैं
जो बीत गया उस पर अपने कोई जोर नहीं…
बहुत अच्छे भाव
bahut hi payari kavita ……..