रिवाज़

औरतों को आज़ादी है
पसंद करने की और लेने की भी
लेकिन सिर्फ़ घर के लिए पर्दे
बिस्तर के लिए चादरें
अपने लिए साड़ी
डिनर सेट, कटलरी,
कपड़े धोने का डिटर्जेंट
सब्ज़ी-भाजी
और शादी में लेने-देने का सामान भी
बस नहीं है तो
उसे चुनने की आज़ादी
जिसके साथ वो बसाती है
अपनी गृहस्थी…

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6 thoughts on “रिवाज़”

  1. बहुत सही कहा. समय काफी बदला, और बदले हुए समय के कारण ही जो वो चुन पा रही है चाहे वो पर्दा… यह चुनाव भी पहले हासिल नहीं था.

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    • जी बदला है मानता हूँ, लेकिन सुबह को सुबह तक नहीं कह सकते जब तक आसमान में पूरी तरह उजाला हो जाये।

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