मैंने तुमसे कह तो दिया

मैंने तुमसे कह तो दिया कि तुम पर मैंने कुछ लिखा है…
और तुम भी खामाख्वाह में जज़्बाती होकर
पूछने लगीं कि लिखा क्या है?
हालाँकि, वो मैंने तुम्हें यूँ ही नहीं कहा था
क्योंकि मैंने कल रात तुम्हें आईने में रखकर
लफ़्ज़ों को बुना था,
पर आज जब मैं तुमसे दुबारा मिला
तो लगा कि कुछ कमी रह गयी थी उनमें
इसलिए अभी उन लफ़्ज़ों की सिलाई उधेड़कर
दुबारा कुछ बुनने बैठा हूँ
और अब सोच रहा हूँ
कि शुरू कहाँ से करूँ?
तुम्हारा मुझे पुकारने के अंदाज़ से?
जिसमें मैं साउथ का कोई हीरो होता हूँ..
या फिर चाय पीने की उस अदा पे
जब तुम प्याले को बड़े इत्मीनान से होंठो से लगाती हो?
या तुम्हारी आँखों से
जिन्हें तुम कभी-कभी
दोनों तरफ से काजल की कैद में समेट देती हो ???
ह्म्म्म…आज रहने देता हूँ…
फिर कभी फुरसत में बैठूँगा सोचूँगा..
ठीक उसी तरह जैसे
तुम्हें बनाने के लिये खुदा ने भी सोचा होगा,
वक्त निकाला वक्त निकला होगा….
लेकिन
मैंने तुमसे कह तो दिया है कि

तुम पर मैंने कुछ लिखा है…

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