मन

पौधे जैसा ही है ये कि कहीं लगा भी दो,

तो तब तक नहीं लगता,
जब तक इसे खुशहाल मिट्टी, 
वाजिब नमी और ज़रूरतमंद रोशनी न मिले,
गर कहीं लग गया,
तो फिर इसे हटाना भी मुश्किल है,
कई बार,
ज़ोर-ज़बर्दस्ती से हटा भी दो,
तो इसका दुबारा पनपना,
मुश्किल होता है,
वैसे,
दुनिया में अनगिनत लोग,
बेमन तरीके से लगे हैं,
अपने – अपने कामों में,
क्योंकि कभी – कभी,
रोज़ी – रोटी के लिए,
मन मार के भी काम करना पड़ता है,
चलता हूँ…
मेरा भी कुछ काम बाकी पड़ा है. 

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