दुनिया इधर की उधर हो जाये लेकिन,
तुम जान-ए-मन,
जैसी की तैसी मिलती हो,
चाय बार में,
काँच के प्याले में..
और एक-दो चुस्कियों में,
जुबां को मीठा कर जाती हो,
वैसे बहुत कड़वाहट भर दी है,
इस दुनिया ने मेरे दिल में,
क्या दिल के लिए भी,
कोई चाय आती है?
नज़्मों का घर