बहुत बदनाम हूँ
उस गली के गुंडे से भी ज़्यादा
जो आती-जाती हर लड़की को
अपने साथ सुलाना चाहता है
उस करप्ट लीडर से भी ज़्यादा
जिसने ग़रीबों का राशन खाया है
लेकिन इतना बदनाम होने के बाद भी
जो बात मुझमें अच्छी है वो ये कि
कि खड़े पे सिर्फ मैं काम आता हूँ
फिर भी समझ नहीं आता
कि लोग दबी ज़ुबान में ही
मेरा नाम क्यूँ लेते हैं..
इतना ख़राब भी नहीं है
जिसने भी रखा है मेरा नाम
कॉन्डम..
क्या हुआ शर्मा गए..??
बेहतरीन विचार है जिसे आप ने कलमबध्द किया. आज के युवाओं को इस विषय में खुल के बात करना होगी जैसे आप ने की है साधुवाद
शुक्रिया प्रणव भाई… कोशिश यही है कि कुछ बेहतर सोचें और समाज को सही दिशा प्रदान करें.