इश्क़ तब और अब

इश्क़ निभाना पहले भी मुश्किल था
आज भी मुश्किल ही है
पहले न मिल पाने की मजबूरियाँ होती थीं
एक-दूसरे से बात करने में दुश्वारियाँ होती थीं
साथ जीने-मरने की कसमें ही खा पाते थे लोग
क्यूंकि तब प्रेम कहानियों की एंडिंग अलग होती थी
उस वक़्त लोग दिल में किसी और की याद लिए
किसी और की ज़िन्दगी में नई यादें बुन रहे होते थे
वो सूखी यादें
जो किसी के गुस्से वाली चीख से जाग जाया करती थीं,
और आंसुओं की नमी से हरी हो जाया करती थीं

आज इश्क़ की मुश्किलें और हैं…
न मिल पाने की मजबूरियाँ और हैं…
कभी ऑफिस की इमरजेंसी मीटिंग,
कभी ओवरटाइम
कभी सेल्स टार्गेट
कभी प्रोजेक्ट डेडलाइन..

अब बात करने के लिए बार–बार कॉल करने पर
कभी सामने वाला कह ही देता है
तुम्हारे पास कोई काम नहीं है?
या फिर दोस्तों के साथ हूँ..बात नहीं हो सकती

और कॉल कम करो तो सुनने मिलता है
कि तुम्हें तो बात करनी ही नहीं होती..

आज लोग साथ जीने-मरने की कसमें नहीं खाते
प्रैक्टिकल जो हो गए हैं
कुछ दिन साथ रहकर पूरी ज़िन्दगी का आईडिया लगा लेते हैं
या फिर ये तय होता है कि
फॅमिली मान गयी तो ठीक
वरना तुम अपने रस्ते और हम अपने
अब तो प्रेम कहानियों की एंडिंग और भी अलग होती है
वुड बी कभी भी एक्स हो सकता है
और एक्स.. सिर्फ़ दोस्त
और दोस्त… वुड बी
यादें दिल में रखना अब क्लीशे हो गया है
अब वो फ़ेसबुक की टाइमलाइन पर ही मिला करती हैं
इस सबके बावजूद
ये तुम जानते हो, मैं जानता हूँ और दुनिया जानती है
कि इश्क़ निभाना पहले भी मुश्किल था
और आज भी मुश्किल ही है

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2 thoughts on “इश्क़ तब और अब”

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