आज सोसाइटी के बच्चे, सुबह से खेल रहे हैं…
उन्हें लगता है कि ये छुट्टी का माहौल रोज क्यों नहीं रहता,
और बस्ती के बच्चों में खौफ है,
अगर दो-चार दिन ऐसा ही रहा,
तो दो वक्त की रोटी का इंतजाम कैसे होगा???
धर्म का नहीं…गरीबों की भूख का आज फैसला होगा,
यही कोई दोपहर में तीन-साढ़े तीन बजे.
(पुणे, महाराष्ट्र में अपने दोस्त के घर से)
जनाब, जबलपुर में ही हूँ. आदेश करें.
अब कहां हैं भाई साहब
सच कह रहे हैं..
bahut gehri baat keh di aapne!
सही चिन्तन !
उम्दा बात………